( सेठ गोविन्ददास )
श्री गोपालप्रसादजी व्यास से मेरा परिचय तो काफी पुराना है, किन्तु पिछले कुछ समय से उनका यह परिचय हम दोनों की निकटता में परिणत हो गया है और आए दिन भाषा के प्रश्न पर, साहित्यिक क्रिया-कलापों एवं साहित्यिक आयोजनों आदि के सिलसिले में अब तो प्रायः नित्य का ही संबंध बन गया है। भारत के गृहमंत्री श्री गुलजारीलाल नंदा ने एक हिन्दी-सलाहकार समिति बनाई है। इस समिति की एक उप-समिति बनी है, जिसे हिन्दीभाषी राज्यों में हिन्दी की परिस्थिति का अवलोकन और हिन्दी को प्रगति देने का काम सौंपा गया है।इस समिति की अध्यक्षता का भार मुझ पर है और व्यासजी इस समिति के सचिव हैं। कुछ मास पूर्व इस समिति के कारण हम लोगों का यह निकट का संबंध और बढ़ा। मैंने इस समिति के कार्य में उनकी कर्मठता और तत्परता का भी अनुभव किया।
व्यासजी ने प्रारंभ से ही पत्रकारिता के माध्यम से हिन्दी-जगत की जो सेवा की है और आज भी कर रहे हैं, वह अपना एक विशिष्ट महत्व और स्थान रखती है। आगरा से निकलने वाले हिन्दी मासिक ‘साहित्य संदेश’ के प्रकाशन में उनका प्रधान हाथ रहा है। उनके संपादन में पत्र के उस काल के सुप्रसिद्ध द्विवेदी, शुक्ल और उपन्यास अंक उनकी हिन्दी-सेवा की विशेष देन रहे हैं। इसके बाद सन् 44 से आज पर्यन्त ‘दैनिक हिन्दुस्तान’ के सहायक संपादक के रूप में अपनी ओजस्वी और सारगर्भित टिप्पणियों के कारण व्यासजी पर्याप्त ख्याति प्राप्त कर चुके हैं।
व्यासजी की संगठन-शक्ति, व्यावहारिकता, चातुर्य, विनोदी स्वभाव और दूरदर्शिता तथा कार्य-तत्परता से हिन्दी का बहुत हित-साधन हुआ है। पिछले 15 वर्षों से वह दिल्ली प्रादेशिक हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन के मंत्री के रूप में राजधानी में जिस तरह हिन्दी के आंदोलन को सफलतापूर्वक गति प्रदान कर रहे हैं, वह व्यासजी के ही कर्मठ व्यक्तित्व का प्रतिफल है।
व्यासजी प्रारंभ से ही एकनिष्ठ कांग्रेसवादी रहे हैं। स्वातन्त्र्य आंदोलन के दिनों में उन्होंने अंग्रेजों से उनके साम्राज्य के विरुद्ध संघर्ष किया, अब वह अंग्रेजी से उसके साम्राज्य के विरुद्ध संघर्षरत हैं। स्वातन्त्र्य आंदोलन के दिनों में अपनी वीररस-पूर्ण कविता ‘कदम-कदम बढ़ाए जा’ से उन्होंने राष्ट्र को प्रेरणा दी थी, आज भी वह उनकी अनेक राष्ट्रीय रचनाएं नवयुवकों को देशभक्ति और देशसेवा के लिए प्रेरित करती हैं।
व्यासजी का गद्य और पद्य दोनों पर ही समान अधिकार है। उन्होंने कोई एक दर्जन से कुछ अधिक ही पुस्तकें लिखी हैं, किन्तु प्रधान रूप से व्यासजी व्यंग्य-विनोद-साहित्य के एक सिद्धहस्त कलाकार हैं। किन्तु ऐसे विनोदी अथवा व्यंग्यकार नहीं कि देश के संक्रामक काल में भी वह अपनी वाणी और लेखनी से विनोदी साहित्य उड़ेंलते रहें। पिछले दिनों जब मातृभूमि पर चीन का बर्बर आक्रमण हुआ तो व्यासजी की विनोदी लेखनी ने विनोद के स्थान पर आग उगलना आरंभ किया। एक ओर व्यासजी की लेखनी लोगों को हंसाने, दुलराने और बहलाने में समर्थ है तो दूसरी ओर मातृभूमि के बलिपथ पर बलिदानी प्रेरणा भरा ज्वालामुखी का लावा उगलने में भी। इस प्रकार व्यासजी स्वयं एक देशभक्त तो हैं ही, वह देशभक्ति के प्रेरणा-स्रोत भी हैं, एक सच्चे सैनिक और सेनापति की भांति।
यह वर्ष व्यासजी की स्वर्णजयंती का वर्ष है और उनके साथी, मित्र और शुभचिंतक उन्हें एक अभिनंदन-पुस्तिका भेंट कर रहे हैं। यह एक बहुत ही स्तुत्य और उपयुक्त निर्णय हुआ है। व्यासजी की सेवाएं और उनका व्यक्तित्व इसके उपयुक्त है। मैं इस अनुष्ठान में अपनी हार्दिक शुभकामनाएं अर्पित करता हूं और भगवान से प्रार्थना करता हूं कि वह श्री व्यासजी को स्वस्थ एवं दीर्घजीवी करे, जिसमें वह पूर्ववत अपने मेधावी व्यक्ति और व्यक्तित्व रूप से देश, समाज, साहित्य और संस्कृति की सेवा करते रहें।
(‘व्यास-अभिनन्दन ग्रंथ’ से, सन् 1966)