हिन्दी भवन के तत्वावधान में हरिवंशराय बच्चन की जन्मशती के अवसर पर ‘कविता सम्मेलन’ का स्तरीय एवं भव्य आयोजन किया गया। इसमें बच्चनजी के साथ अनेक बार काव्यपाठ करने वाले कवियों ने अपनी विशिष्ट कविताओं के साथ-साथ उनसे जुड़े आत्मीय व अंतरंग संस्मरण भी सुनाए।
विशिष्ट अतिथि स्व. धर्मवीर भारती की धर्मपत्नी एवं सुपरिचित लेखिका डॉ. पुष्पा भारती ने बच्चनजी को याद करते हुए कहा कि बच्चनजी से उनका जन्म का साथ था (जनम-जनम का नहीं) । सन 35 में छपी उनकी ‘मधुशाला’ के साथ ही उनसे सीधा परिचय हुआ। उन्होंने बताया कि बच्चनजी अद्वितीय कवि तो थे ही उनकी आत्मकथा का गद्य भी अदभुत है। बच्चनजी के सामाजिक सरोकारों की बात करें तो उनकी कविताओं और गीतों ने तत्कालीन युवा पीढ़ी को कुंठाओं और वर्जनाओं से मुक्त करने में अहम भूमिका निबाही। बच्चनजी अपने साहित्य को अपना वाड.मय-शरीर मानते थे और कहते थे कि मेरे न रहने पर मेरे साहित्य में अगर आप मुझे और स्वयं को पा सकें तो मेरा लेखन धन्य हो जाएगा। आज मुझे लग रहा है कि बच्चनजी अपने वाड.मय शरीर के साथ हमारे बीच हैं।
डॉ. पुष्पा भारती ने आलोचकों द्वारा बच्चनजी की उपेक्षा करने पर अफसोस जताया।
इस अवसर पर पुष्पाजी ने बच्चनजी की कविता ‘भिखारी’ का पाठ किया और अमिताभ बच्चन का शुभकामना संदेश पढ़कर सुनाया।
‘कविता सम्मेलन’ के मुख्य अतिथि साहित्यमना उद्योगपति श्री रामनिवास जाजू ने बच्चनजी के संस्मरण सुनाते हुए कहा कि उन्होंने पहली बार पिलानी में हिन्दी साहित्य परिषद के एक कवि सम्मेलन में सन् 1948 में बच्चनजी को बुलाया था।वहां बच्चनजी ने ‘भावना का मैं भिखारी ढूंढता फिरता अकेला’ कविता का पाठ किया। वास्तव में बच्चनजी गेय कविता के पर्याय थे। इस मौके पर जाजूजी ने ‘मैं कृपापात्र ही बना रहूंगा, क्या कभी पात्र भी बनूंगा’ कविता सुनाई।
‘कविता सम्मेलन’ के अध्यक्ष लोकप्रिय और वरिष्ठ गीतकार श्री गोपालदास नीरज ने संस्मरण सुनाते हुए कहा कि एक बार मैं बच्चनजी के साथ कानपुर से कवि-सम्मेलन में भाग लेने बांदा जा रहा था। बस इतनी ठसाठस थी कि उसमें बैठने को जगह नहीं थी। जैसे-तैसे बच्चनजी को एक सीट मिल गई तो उन्होंने मुझसे कहा-“आओ तुम मेरी गोद में बैठ जाओ।” मैंने कहा- “मैं आपकी गोद में तब बैठूंगा, जब आप मुझे अपनी तरह यशस्वी और लोकप्रिय होने का आशीर्वाद देंगे।” उन्होंने मुझे अपना आशीर्वाद दिया। मैं उनकी गोद में बैठा। तब से आज तक मैं उनकी परंपरा को बढ़ा रहा हूं। मेरा और उनका संबंध साठ वर्ष तक बना रहा। बच्चनजी ही थे जिन्होंने कवियों को जीविकोपार्जन के लिए पारिश्रमिक दिलाने में अहम भूमिका अदा की। इस अवसर नीरजजी ने एक दार्शनिक पृष्ठभूमि की कविता सुनाई-
इस सागर में कोई न बचा
सबके सब क्षण में डूब गए
जो मंझधारों से बच आए
वो किसी नयन में डूब गए।
तू मन अनमना न कर अपना
इसमें कुछ दोष नहीं तेरा,
धरती के कागज पर तेरी
तस्वीर अधूरी रहनी थी।
किस महूरत में दिन निकलता है,
शाम तक बस हाथ मलता है।
हमने बौनों की जेब में देखी,
नाम जिस चीज का सफलता है।
दोस्तों ने जिसे डुबोया हो,
वो ज़रा देर में संभलता है।
एक धागे का साथ देने को,
मोम का रोम-रोम जलता है।
वरिष्ठ साहित्यकार, बच्चनजी के शिष्य और बच्चन रचनावली के संपादक श्री अजित कुमार ने अंतरंग संस्मरण सुनाते हुए कहा कि प्रोफेसर बच्चन और कवि बच्चन के स्वभाव में जमीन-आसमान का फर्क था। उन्होंने इस मौके पर ‘जरूरत’ शीर्षक कविता का पाठ किया।
छोटी से बड़ी हुईं तरुओं की छायाएं
धुंधलाई सूरज के माथे की रेखाएं,
मत बांधो आंचल में फूल, चलो लौट चलें,
वह देखो कोहरे में चंदन वन डूब गया।
ऐसे क्षण आए जीवन में
अपनी छाया अंकित कर दूं
इस देहरी, उस द्वारे
पानी में प्रतिबिम्ब निहारूं
मनमोहक पट धारे
चकाचौंध कर देने वाला
सूरज दर्पण लगे,
नयन रह जाएं ठगे-ठगे।
वरिष्ठ मीडियाकर्मी, कवि एवं साहित्यकार श्री राजनारायण बिसारिया की मार्मिक कविता ‘ग्रामवधू की विदा’ सुनकर श्रोताओं की आंखें छलछला आईं।
‘कविता सम्मेलन’ का शुभारंभ श्री सोम ठाकुर ने बच्चनजी के गीत -‘आ सोने से पहले गा लें’ के सुमधुर पाठ से किया। इस मौके पर उन्होंने अपना गीत ‘लौट आओ मांग के सिंदूर की सौगंध तुमको’ सुनाया।
हिन्दी भवन के अध्यक्ष श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी ने ‘कविता सम्मेलन’ में पधारे कवियों, अतिथियों और श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापन किया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. गोविन्द व्यास और श्री सोम ठाकुर ने संयुक्त रूप से किया। इस अवसर पर राजधानी के अनेक कवि, लेखक, पत्रकार और बच्चनप्रेमी भारी संख्या में मौजूद थे।