राजर्षि टंडन की 127वीं जयंती के अवसर पर हिन्दीप्रेमियों से खचाखच भरे हिन्दी भवन सभागार में तालियों की गड़गड़ाहट के बीच अपनी काव्यात्मक, मुहावरेदार और टकसाली हिन्दी को जन-जन तक पहुंचाने वाले विख्यात क्रिकेटर, कमेंटेटर और टीवी सितारे श्री नवजोत सिंह सिद्धू को ग्यारहवें ‘हिन्दीरत्न सम्मान’ से नवाजा गया। श्री सिद्धू को सुषमा स्वराज, प्रभाष जोशी, आरती मेहरा, त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी और डॉ. गोविन्द व्यास ने पुष्पाहार, शाल, रजत श्रीफल, वाग्देवी की प्रतिमा, प्रशस्ति-पत्र तथा 31 हजार रुपये की नकद राशि प्रदान करके सम्मानित किया।
इस अवसर पर श्री नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा कि वह पंजाबी होने से पहले एक हिन्दुस्तानी हैं। मेरे लिए हिन्दी मात्र भाषा ही नहीं है, बल्कि वाणी है, संस्कृति है और मेरी अस्मिता है। यदि भारतीय संस्कृति को सुदृढ़ और संरक्षित करना है तो हर देशवासी को अपने हृदय में हिन्दी को स्थान देना पड़ेगा। श्री सिद्धू ने आगे कहा कि ‘हिन्दीरत्न सम्मान’ मिलना मेरे लिए एकदम अप्रत्याशित है तथा मुझे हिन्दी के प्रचार-प्रसार में और अधिक जिम्मेदारी से लगने के लिए प्रेरित करने वाला है।
‘हिन्दीरत्न सम्मान’ के लिए आभार व्यक्त करते हुए श्री सिद्धू ने घोषणा की कि वह जब तक जीवित रहेंगे, अपनी ओर से एक लाख रुपये ‘हिन्दीरत्न सम्मान’ की राशि के रूप में प्रतिवर्ष देते रहेंगे। इस अवसर पर हिन्दीनिष्ठ लोकप्रिय सांसद और मुख्य अतिथि सुषमा स्वराज ने कहा कि टंडनजी के बारे में पढ़ा है, सिद्धूजी के बारे में जानती ही हूं। जिस आर्य गर्ल्स कॉलेज की स्थापना पं. भीमसेनजी ने अंबाला में की वह मेरे घर की बगल में ही है। स्वाभाविक है उनसे तो पारिवारिक संबंध रहे ही हैं। भीमसेनजी ने उस समय पंजाब में हिन्दी का प्रचार-प्रसार किया जब वहां उर्दू का बोलबाला था। टंडनजी की एक बात ने मुझे बेहद प्रभावित किया है कि उन्होंने हिन्दी को कभी दलों की सीमा में नहीं बंधने दिया। बहुत बार ऐसे प्रसंग आए जब उनकी पार्टी ने हिन्दी के बारे में कोई अप्रिय निर्णय लिया तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि मैं हिन्दी के पक्ष में ही मतदान करूंगा, पार्टी के पक्ष में नहीं।
दिल्ली की महापौर और विशिष्ट अतिथि आरती मेहरा ने कहा कि क्षत्रिय होने के नाते मैं टंडनजी की वंशज हूं। मैं अपनी तथा दिल्ली की जनता की ओर से सिद्धूजी को हार्दिक शुभकामनाएं देती हूं। आपने युवा पीढ़ी का गौरव बढ़ाया है। आपकी वाकपटुता के सभी कायल हैं। खासतौर से मेरी पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी के लिए काव्यात्मक और मुहावरों से भरी हुई जिस हिन्दी को आपने स्थापित किया है, उसके लिए पुनः आपको बधाई देती हूं।
हिन्दी भवन के अध्यक्ष एवं कर्नाटक के पूर्व राज्यपाल त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी ने अपने आशीर्वचन में कहा कि मैं सिद्धूजी के कार्यक्रम कभी-कभी देखता हूं। उनके कार्यक्रम से प्रभावित भी होता हूं। वह भाषा के तकनीकी मुद्दों को भी समझाने की कोशिश करते हैं। उनमें वाकपटुता है, हाजिरजवाबी है। उनके हास्य में अश्लीलता या फूहड़पन दिखाई नहीं पड़ता। मेरी उनको बहुत-बहुत बधाई।
हिन्दी भवन के संस्थापक पं. गोपालप्रसाद व्यास को याद करते हुए चतुर्वेदीजी ने कहा कि आज हम जिस हिन्दी भवन में बैठे हैं, यह पं. गोपालप्रसाद व्यास की निष्ठा और लगन का फल है। टंडनजी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने सभी का धन्यवाद किया।
‘हिन्दीरत्न सम्मान’ प्रतिवर्ष राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन की जयंती के अवसर पर पंजाब के स्वतंत्रता सेनानी और पत्रकार पं. भीमसेन विद्यालंकार की स्मृति में ऐसे हिन्दीसेवी को प्रदान किया जाता है जिसकी मातृभाषा हिन्दी न हो।
वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी ने श्री सिद्धू को ‘हिन्दीरत्न सम्मान’ से सम्मानित करने पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए कहा कि हिन्दी भवन ने आज लीक से हटकर एक ऐसे गैर साहित्यिक अहिन्दीभाषी को सम्मानित किया है, जिसने बोलचाल की रसवंत हिन्दी को आम जनता तक पहुंचाया है। साथ ही उन्होंने श्री सिद्धू को नए कवियों की कविताएं उद्धृत करने तथा पैसे के लिए हास्य के भोंडे टीवी कार्यक्रमों से बचने की सलाह भी दी।
इस अवसर पर भारतीय दर्शन के अध्येता, चिंतक एवं शिक्षाविद् स्व. प्रो. इन्द्रचन्द्र शास्त्री के तैल-चित्र का अनावरण भी किया गया समारोह का संचालन सुश्री अलका सिन्हा ने किया।
जन्म : 20 अक्टूबर, 1963, पटियाला (पंजाब)
शिक्षा : स्कूली शिक्षा – यादविन्द्र पब्लिक स्कूल, पटियाला
स्नातक – मोहिन्द्रा कॉलेज, पटियाला
विधि-स्नातक – पंजाब विश्वविद्यालय
17 वर्ष की अल्पायु में सफल क्रिकेटर के रूप में उभरे, प्रति पारी रन बनाने का औसत लगभग 42 रन, विदेशी भूमि पर 5 शतक बनाये तथा अधिकतम व्यक्तिगत स्कोर 289 रन, क्रिकेट जैसे जीवंत खेल को हिन्दी के माध्यम से रसवंत बनाने वाले प्रमुख समीक्षक और कमेन्टेटर एवं चर्चित तथा लोकप्रिय सांसद।
मूलतः पंजाबीभाषी, समय-समय पर सार्थक मुहावरों, छन्दों, दोहों तथा उद्धरणों के माध्यम से चुटकियां लेने में माहिर, अपनी बोलचाल में मुहावरेदार और टकसाली भाषा का प्रयोग कर देशभर में हिन्दी की प्रवाहमान शैली को लोकप्रिय बनाकर श्री नवजोत सिंह सिद्धू ने अच्छी और सच्ची हिन्दी को जन-जन तक पहुंचाया है। श्री सिद्धू का हिन्दी के साथ-साथ अनेक भारतीय भाषाओं पर समुचित अधिकार है। इन दिनों श्री सिद्धू विभिन्न टीवी चैनलों पर प्रसारित हो रहे हास्य-व्यंग्य के कार्यक्रमों को प्रभावी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।