श्री गोपाल प्रसाद व्यास

कोई उन्हें हास्य-सम्राट कहता है, कोई हास्य-रसावतार। कोई उन्हें हिन्दी जगत की एक अद्भुत विभूति मानता है, तो कोई ज़बरदस्त आयोजक और संगठनकर्ता। कोई उन्हें हिन्दी का मर्मज्ञ साहित्यकार कहता है, तो कोई ब्रज भाषा की महत्वपूर्ण उपलब्धि तथा ब्रजभाषा और पिंगल का अंतिम विद्वान। कोई उन्हें महान हिन्दीसेवी कहता है, तो कोई हिन्दी का समर्पित पत्रकार।

कुछ लोग उन्हें असाधारण व्यक्तित्व के धनी के रूप में पहचानते हैं, तो कुछ उनके असाधारण संघर्ष और परिश्रम की बात करते हैं। कुछ लोग उन्हें उन्मुक्त और अनायास मस्ती का पर्याय समझते हैं, तो कुछ उनकी ठिठोली और कहकहों की चर्चा करते हैं। कुछ कहते हैं ‘हिन्दी भवन’ का निर्माण करवा कर व्यासजी हमेशा-हमेशा के लिए अमर हो गए, तो शेष का मानना है कि 45 वर्षों तक लगातार ‘नारदजी ख़बर लाए’ लिखकर उन्होंने संभवतः विश्व में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। कुछ लोगों के मन में वे अपनी परिवार-रस की कविताओं ‘पत्नी को परमेश्वर मानो’, ‘साला-साली’ और ‘ससुराल चली’3 जैसी कविताओं के साथ हमेशा जीवित रहेंगे तो कुछ कदम-कदम बढ़ाए जा’ की कविताओं विशेषकर ‘वह खून कहो किस मतलब का आ सके देश के काम नहीं’ के कारण उन्हें कभी भूल नहीं पाएँगे।

पंडित गोपालप्रसाद व्यास ‘श्री पुरुषोत्तम हिन्दी भवन न्यास समिति’ के संस्थापक मंत्री थे। हिंदी के प्रति उनकी अटूट निष्ठा और इसे राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने का उनका प्रबल जुनून ही ‘हिंदी भवन’ की स्थापना के पीछे की मुख्य शक्ति था। उन्होंने हिंदी के प्रचार और प्रसार के लिए अथक प्रयास किए और राजधानी दिल्ली में ‘हिंदी भवन’ की स्थापना के लिए लंबा और कठिन संघर्ष किया। उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और समर्पण के परिणामस्वरूप ही आज यह संस्थान हिंदी साहित्य और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन सका है। हिंदी के प्रति उनकी गहरी लगन और ‘हिंदी भवन’ को साकार करने के उनके अथक प्रयासों को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

तो आइए मिलते हैं पद्मश्री पंडित गोपालप्रसाद व्यास से उनके हर रूप-स्वरूप में, हर रस और रंग में…