राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन की 123वीं जयंती के अवसर पर सातवां पं. भीमसेन विद्यालंकार स्मृति ‘हिन्दीरत्न’ सम्मान डोगरी एवं हिन्दी की लोकप्रिय साहित्यकार श्रीमती पद्मा सचदेव को दिल्ली के महामहिम उपराज्यपाल श्री बनवारीलाल जोशी द्वारा प्रदान किया गया। समारोह की अध्यक्षता की हिन्दी भवन के अध्यक्ष एवं कर्नाटक के राज्यपाल श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी ने। श्री जोशी ने श्रीमती पद्मा सचदेव को स्मृति चिह्न व प्रशस्ति-पत्र, श्री चतुर्वेदी ने शाल व पुष्पगुच्छ एवं श्रीमती वेदकुमारी विद्यालंकार ने सम्मान राशि भेंट की।
इस अवसर पर दिल्ली के उपराज्यपाल ने समारोह को संबोधित करते हुए कहा, “पुरुषोत्तम मास में पैदा हुए टंडनजी वास्तव में पुरुषोत्तम थे और किसी भी पद के प्रति अनासक्त थे।” श्री जोशी ने हिन्दी भवन के संस्थापक पं. गोपालप्रसाद के अनुरोध पर राजर्षि टंडन के नाम पर किसी मार्ग का नामकरण और डाक टिकट जारी करने का आश्वासन दिया।
वक्ता श्री मनोहर विद्यालंकार ने राजर्षि टंडन और भीमसेन विद्यालंकार के गुणों में समानता को रेखांकित किया। इस अवसर पर हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार एवं पत्रकार श्री धर्मवीर भारती के तैल-चित्र का अनावरण उनकी धर्मपत्नी श्रीमती पुष्पा भारती द्वारा किया गया। समारोह में हिन्दी के विशिष्ट साहित्यकार, पत्रकार और लेखक मौजूद थे। जिनमें प्रमुख हैं- सर्वश्री बालस्वरूप राही, कन्हैयालाल नंदन, ओमप्रकाश आदित्य, सुरेन्द्र शर्मा, शरनरानी बाकलीवाल, इन्दु गुप्ता, रामनिवास लखोटिया, महेशचन्द्र शर्मा, इन्दिरा मोहन, अजय भल्ला, रत्ना कौशिक, बलदेव वंशी आदि। हिन्दी भवन के मंत्री डॉ0 गोविन्द व्यास ने आगंतुकों का आभार व्यक्त किया और समारोह का संचालन डॉ0 आशा जोशी ने किया।
जन्मः- सन्-1940, जम्मू के एक गांव में।
पद्मा सचदेव डोगरी और हिन्दी-साहित्य में जाना-पहचाना नाम है। प्रकृति की अद्भुत प्रेमी और संवेदनशील मन की धनी पद्माजी को संस्कृत भाषा का संस्कार अपने स्व0 पिता व संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान पंडित जयदेव शर्मा से विरासत में मिला। विभाजन की त्रासदी में पिता को खोया और अकेली विधवा मां को समाज में संघर्ष करते देखा, जिसने उनके कवि-मन को गहरी ताकत दी। पद्माजी की पहली कविता सन् 1955 में जम्मू के एक दैनिक पत्र में प्रकाशित हुई। जिसके बाद उनके लेखन का क्रम आज तक निरंतर गतिशील है। सन् 1969 में प्रथम कविता संग्रंह ‘मेरी कविता, मेरे गीत’ प्रकाशित हुआ, जिसे सन् 1971 में साहित्य अकादमी सम्मान प्राप्त हुआ।
पद्माजी की रचनाओं में जीवन के सुख-दुःख की गहनतम अनुभूति व्यक्त हुई है। स्त्री-विमर्श उनकी कविताओं की अन्यतम शक्ति है, किन्तु उनकी स्त्री जीवन से परिपूर्ण, गरिमामयी, ममतामयी व आत्मसम्मान से युक्त है।
डोगरी और हिन्दी दोनों भाषाओं में उनकी लेखनी अबाध गति से चली है। डोगरी की प्रथम कवयित्री होने का गौरव भी उन्हें प्राप्त है। पद्माजी ने मराठी, उर्दू, उड़िया और कोरियन कविताओं का हिन्दी और डोगरी में अनुवाद भी किया है।
पद्माजी को साहित्यिक क्रियाशीलता व अवदान के लिए अनेक सम्मान प्राप्त हुए हैं।जिनमें प्रमुख हैं- जम्मू-कश्मीर सम्मान, सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड, हिन्दी अकादमी सम्मान, सौहार्द सम्मान, उत्तरप्रदेश अकादमी सम्मान, हार्मनी अवार्ड आदि।
पद्माजी ने देश-विदेश में अपने साहित्यिक व्यक्तित्व से विशिष्ट ख्याति अर्जित की है। फिल्मों के लिए गीत भी लिखे हैं तथा अनुवाद-कार्य के लिए साहित्य अकादमी व अनुवाद परिषद से भी सम्मानित हुई हैं। पद्माजी सन् 2000 में अपने कृतित्व के लिए ‘पद्मश्री’ से सम्मानित हुईं।
डोगरी साहित्य (कविताएं):
1. मेरी कविता मेरे गीत
2. तवी ते छना
3. न्हेरियां गलियां
4. पोटा-पोटा निम्बल
5. उत्तरवाहिनी
6. तैंथियां
7. अक्खरकुंड
8. चित चेते (संस्मरण) प्रकाशनाधीन
1. अब न बनेगी देहरी
2. नौशीन
3. भटको नहीं धनंजय
4. जम्मू जो कभी शहर था (उपन्यास)
लघु कहानियां :-
1. गोदभरी
2. बू तूं राजी
1. दीवानखाना
2. मितवाघर
3. अमराई
1. डोगरी की प्रतिनिधि कहानियां
2. मेरी कविता मेरे गीत
3. आखर गांस
1. सबद मिलावा
2. डोला कौन थापया
अंग्रेजी से हिन्दी :- शिशिर रात्रि का अनुराग
अंग्रेजी से डोगरी :- बी.पी.साठे