हिन्दी भवन के तत्वाधान में विशिष्ट एवं लोकप्रिय कथाकार शिवानी एवं प्रखर राष्ट्रवादी पत्रकार और नेता ब्रजमोहन शर्मा की स्मृति सभा का आयोजन शुक्रवार, 28 मार्च, 2003 को हिन्दी भवन के गोपालप्रसाद व्यास सभाकक्ष में किया गया। गौरापंत शिवानी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए विशिष्ट आलोचक डॉ. कृष्णदत्त पालीवाल ने कहा “शिवानी को सबसे बड़ी श्रद्धांजलि यही होगी की हम उन्हें दोबारा पढ़ें। शिवानी को याद करते हुए आंखों के सामने एक युग तैर जाता है।” डॉ. पालीवाल ने साहित्य अकादमी में शिवानी के अंग्रेजी की ज़गह हिन्दी में एक पत्र पढ़ने के लिए अड़ जाने संबंधी संस्मरण भी सुनाया।
सभा का संचालन करते हुए हिन्दी भवन के निदेशक डॉ. शेरजंग गर्ग ने कहा- “शिवानी की लोकप्रियता बड़े-बड़े दिग्गजों के लिए ईर्ष्या का विषय हो सकती है।” इसी क्रम में डॉ. गर्ग ने ब्रजमोहनजी के लिए कहा- “उनका व्यक्तित्व ऐसा था कि नेताओं से चिढ़ने वाला कोई भी व्यक्ति उनसे मिलने के बाद अपनी राय बदल देता था।”
कथाकार-व्यंग्यकार प्रदीप पंत ने कहा कि शिवानी को लोकप्रिय कहकर खारिज नहीं किया जा सकता। डॉ. शिवमंगल सिद्धांतकर ने शिवानी और ब्रजमोहन को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को रेखांकित किया।
हिन्दी भवन के संस्थापक मंत्री और वरिष्ठ साहित्यकार पं. गोपालप्रसाद व्यास ने गौरापंत शिवानी और ब्रजमोहन को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपने शोक संदेश भेजे जिन्हें क्रमशः डॉ. संतोष माटा और देवराजेन्द्र ने पढ़कर सुनाया। व्यासजी ने अपने शोक-संदेश में शिवानी को याद करते हुए लिखा था – “मेरी आत्मीय, सुपरिचित, छोटी बहन के समान शिवानीजी के स्वर्गारोहण पर मेरी हार्दिक शोक-संवेदनाएं।
शिवानीजी का मुझ पर बड़ा हार्दिक स्नेह था। जब-जब मैं लखनऊ जाता, तब-तब भाई अमृतलाल नागर के साथ या अकेला भी उनसे मिलने जाया करता था। वे सदैव अपनी रचनाओं के संबंध में, उनकी पृष्ठभूमि के संबंध में मुझसे बातें किया करती थीं। मैं क्या लिख रहा हूं, क्या कर रहा हूं, इसके संबंध में सदैव पूछताछ करती रहती थीं। मैंने उनके हाथ का बनाया जलपान भी जब-जब गया हूं, तब-तब प्राप्त किया है। वह कुछ लिख भी रही होतीं या कोई अन्य काम कर रही होतीं तो उसे छोड़कर मुझे दरवाजे से हाथ पकड़कर अंदर ले आती थीं और खिला-पिलाकर दुःख-सुख की बातें पूछकर दरवाजे तक छोड़ने आया करती थीं। विचारों में भी हम दोनों में समानता थी। भाई नागरजी, हम दोनों के स्नेह-मिलन के सूत्रधार थे।
उनके ठहाके और शिवानीजी की मुस्कान, गंभीरता और लेखन पटुता की स्मृतियों से मेरा हृदय भरा हुआ है। शारीरिक अक्षमता के कारण मैं निगम बोध घाट नहीं जा सका। मैं उनके अंतिम दर्शन और स्वर्गारोहण के पवित्र अनुष्ठान से वंचित रह गया। अपने मन का दर्द किससे कहूं ? शिवानी अपनी कृतियों में सदैव अमर रहेंगी। प्रभु उनकी आत्मा को शांति दे और उनके कृतित्व को कालजयी बनाए।”
पं. गोपालप्रसाद व्यास ने अपने अभिन्न मित्र ब्रजमोहन शर्मा को इन शब्दों में याद किया – “ब्रजमोहन शर्मा मेरे पुराने मित्र थे। उन्हीं के शब्दों में- “मैं आपके (यानी मेरे) द्वारा ही 1960 में ‘री-डिसकवर’ किया हुआ आपका ब्रजमोहन हूं।” एक समय था जब भाई ब्रजमोहन शर्मा, महावीर अधिकारी, नवभारत टाइम्स के समाचार संपादक हरिदत्त शर्मा, आकाशवाणी में हिन्दी विभाग के प्रोड्यूसर गोपालकृष्ण कौल और गोपालप्रसाद व्यास यानी मैं, की पंचायत दिल्ली में चर्चा का विषय रहती थी। ब्रजमोहन शर्मा और मैंने दिल्ली कांग्रेस के मुखपत्र का साथ-साथ संपादन किया था। ब्रजमोहन शर्मा मेरे सुसराल पक्ष के नाते मेरे संबंधी भी थे। हम लोगों ने कई क्षेत्रों में साथ-साथ काम किया है, जिनमें मूर्ख महासम्मेलन प्रमुख है।
उसके जुलूसों में हम दिल्ली की जानी-मानी हस्तियों को मूर्खाधिराज बनाया करते थे। एक बार हमारे कब्जे में ब्रजमोहन शर्मा भी आगए। एक ऊंट गाड़ी, जिसमें नीम के पत्ते भरे थे और ऊंट भी अपनी अधोवायु विसर्जित कर रहा था, में बिठाकर उन्हें दिल्ली में घुमा दिया और रामलीला मैदान में ‘मूर्खाधिराज’ की पदवी से सुशोभित कर दिया।
ब्रजमोहन शर्मा बड़े खुशदिल, पेशे से पत्रकार और जन्मजात नेता थे। वह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रहे। जब कभी मैं उनसे पूछता कि क्या कर रहे हो ? तो उत्तर मिलता, “भाई व्यासजी, मैंने तो जीवनभर नेतागीरी की है और कुछ किया ही नहीं।” बात सोलह आने सही थी। कभी कांग्रेस के नेता रहे तो कभी जनता पार्टी के नेता रहे। कभी चौधरी ब्रह्मप्रकाश के बाएं हाथ रहे तो कभी बाबू जगजीवन राम के दाहिने हाथ रहे। आजकल वह ‘राष्ट्रीय विश्वास’ का संपादन भी कर रहे थे। उनके निधन से मेरा एक पारिवारिक मित्र बिछुड़ गया। मेरा ही क्यों, दिल्ली के बुद्धिजीवियों और पत्रकारों की मंडली का एक सदस्य सबका साथ छोड़ जाने कहां विलीन होगया। प्रभु उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें। उनके परिजनों को धैर्य प्रदान करें।”
इस अवसर पर सर्वश्री शरनरानी बाकलीवाल, मधुर शास्त्री, डॉ. गोविन्द व्यास, बाबूलाल शर्मा, जयनारायण खण्डेवाल, राधेश्याम खन्ना, शैल सक्सेना आदि ने भी शिवानी और ब्रजमोहन को अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए।