मनोहरश्याम जोशी

प्रसिद्ध कथाकार, व्यंग्यकार और फिल्मकार मनोहरश्याम जोशी को श्रद्धांजलि देने के लिए शुक्रवार, 31 मार्च, 2006 को हिन्दी भवन द्वारा स्मृति सभा का आयोजन किया गया। इस स्मृति सभा में पूर्व केन्द्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी और योजना आयोग के पूर्व अध्यक्ष कृष्णचंद्र पंत के अलावा कई प्रमुख कथाकार,कलाकार, आलोचक और पत्रकार मौजूद थे।

कथाकार राजेन्द्र यादव ने मनोहरश्याम जोशी को याद करते हुए कहा – “वे एक अद्वितीय किस्म के कलाकार थे। उनके पास अमृतलाल नागर की किस्सागोई थी तो यशपाल की वैचारिकता। शब्दों से वे जितना देखते हैं या दिखाते हैं वह कला बहुत कम लोगों में है।” उनके लेखन की विविधता के उदाहरण के तौर पर उन्होंने ‘कसप’, ‘हमजाद’ और ‘कुरु-कुरु-स्वाहा’ का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि उनका गद्य प्रसन्न गद्य है। वह पढ़ने में अच्छा है तो सुनने में भी अच्छा है। उन्होंने आधुनिकता के सवाल को पहचाना और उसके बीच से अपने लिए स्पेस निकाला। अपने समकालीनों में कोई जीनियस हमें दिखाई देता है तो वह जोशीजी में दिखाई देता है।

आलोचक निर्मला जैन ने कहा -“मैं जोशीजी को तमाम लोगों से विलक्षण मानती हूं। अनेक विधाओं और अनेक मोर्चों पर वे सक्रिय थे। वे हर उपन्यास में अपने को तोड़ते हैं। कोई एक उपन्यास दूसरे जैसा नहीं है। व्यंग्य को उन्होंने गंभीर सोद्दश्यता से एकाकार किया।”

डॉ. कृष्णदत्त पालीवाल ने कहा- “वे अज्ञेयजी के भक्त थे। अक्सर उनके संस्मरण सुनाते थे। आधुनिकता शब्द से वे बहुत डरते थे। असल में वे पुराने ढंग के नए आदमी थे। हर वक्त मज़ाक करना उन्हें बहुत अच्छा लगता था। हम लोग मज़ाक में उन्हें कीमती बाबू कहा करते थे।”

कथाकार मृदुला गर्ग ने कहा -“हिन्दी के वे अकेले साहित्यकार हैं जिन्होंने हमारे आज केविद्रूप को ऐसे दिखाया था कि उसे आंख में उंगली डालकर दिखाने की जरूरत न पड़े। वे कहते थे कि परंपरा को पहले जानना पड़ता है फिर उसे तोड़ सकते हैं।”

पत्रकार आलोक मेहता ने कहा- “उनकी खासियत यह थी कि वे मुंह पर भी आलोचना कर देते थे। गलत काम और गलत बात को सहन नहीं करते थे। वे ऐसे भी थे कि अपने लिखे पर दूसरे का नाम दे देते थे। दूसरों को बड़ा बनाना, दूसरों को सम्मान देना उन्होंने हमें सिखाया।”

व्यंग्यकार प्रदीप पंत ने उनसे निकट संबंधों को याद करते हुए कहा-“उनका साहित्य मूल्यांकन से परे है, पर उसे पढ़कर यही लगता है कि क्या ऐसे भी लिखा जा सकता है।”

कथाकार चंद्रकांता ने कहा-“एक तरफ वे घोर परंपरावादी थे तो दूसरी ओर घोर उत्तराधुनिकतावादी। छोटे-बड़े किसी रचनाकार को उन्होंने कभी बौना नहीं होने दिया।”

व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय ने कहा-“सबसे बड़ा व्यक्ति वह होता है, जिससे बाद की पीढ़ी सीखती है। हमारी पीढ़ी ने उनसे बहुत कुछ सीखा। उन जैसा सक्रिय रचनाकार मैंने नहीं देखा।” हास्यकवि सुरेन्द्र शर्मा ने कहा कि “उनका व्यंग्य सजग करता था, घायल नहीं।”

उनके चचेरे भाई मुरलीमनोहर जोशी ने इस अवसर पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा – “राजनैतिक, सामाजिक विषयों पर मनोहरश्याम जोशी से काफी चर्चा होती थी। बहुत सी बातों में मतभेद भी था। वे जितने उत्कृष्ट साहित्यकार थे उतने ही बड़े मनुष्य भी थे। विचारों में बहुत खुले थे। उन्होंने जो चीज जैसी देखी उसे बिना लाग-लपेट के अपने ढंग से पेश किया। ”

योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष के.सी.पंत ने उनके साथ व्यक्तिगत और पारिवारिक संबंध होने का जिक्र करते हुए कहा- “लखनऊ विश्वविद्यालय में हम साथ थे। तभी से दोस्ती का सिलसिला चला आया। वे बहुत स्पष्टवादी थे। जो बात कहनी होती अपने ढंग से कह डालते थे। हंसमुख थे तो व्यंग्य में माहिर थे।हिन्दी जगत के लिए ही नहीं, हमारी व्यवस्थाओं को रास्ते पर रखने के लिए भी ऐसे चिंतकों की बड़ी आवश्यकता होती है।”

स्मृति सभा में सर्वश्री राजेन्द्र अवस्थी, बालस्वरूप राही, शेरजंग गर्ग, राजनारायण बिसारिया, शीला झुनझुनवाला, लक्ष्मीमल्ल सिंघवी, राजशेखर व्यास, इला पंत, शरनरानी बाकलीवाल, महेशचन्द्र शर्मा, नूतन कपूर, आशा जोशी, संतोष माटा, कुसुम अंसल, अरुण महेश्वरी, राजेश चेतन ने भी मनोहरश्याम जोशी को आत्मीयता के साथ याद किया। स्मृति सभा के अंत में देवराजेन्द्र ने शोक प्रस्ताव पढ़ा। इस स्मृति सभा का संयोजन हिन्दी भवन के मंत्री डॉ. गोविन्द व्यास ने किया। संचालन किया डॉ. प्रेम सिंह ने।