प्रो. ए. अरविन्दाक्षन

राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन की 132 वीं जयंती के अवसर पर प्रख्यात पत्रकार पं. भीमसेन विद्यालंकार की स्मृति में प्रतिवर्ष हिन्दी भवन द्वारा दिया जाने वाला ‘हिन्दीरत्न सम्मान’ राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रबल पक्षधर, अनेक भाषाओं के विद्वान, वरिष्ठ लेखक एवं कवि प्रो. ए. अरविन्दाक्षन को हिन्दी भवन सभागार में आयोजित एक भव्य समारोह में प्रदान किया गया।

समारोह का शुभारम्भ हिन्दी भवन की न्यासी डॉ. रत्ना कौशिक द्वारा तिलक एवं रजत-श्रीफल भेंट कर हुआ। हिन्दी भवन के मंत्री एवं वरिष्ठ कवि डॉ. गोविन्द व्यास ने माल्यार्पण किया। समारोह के मुख्य अतिथि एवं साहित्य अकादमी के अध्यक्ष श्री विश्वनाथ प्रसाद तिवारी द्वारा शॉल, समारोह की अध्यक्षा एवं वरिष्ठ आलोचक प्रो. निर्मला जैन द्वारा वाग्देवी की प्रतिमा, हिन्दी भवन के अध्यक्ष एवं कर्नाटक के पूर्व राज्यपाल श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी द्वारा प्रशस्ति-पत्र एवं हिन्दी भवन के कोषाध्यक्ष श्री हरीशंकर बर्मन तथा हिन्दी भवन के न्यासी श्री रामनिवास लखोटिया द्वारा संयुक्त रूप से एक लाख रुपये की सम्मान राशि का चेक प्रदान कर प्रो. अरविन्दाक्षन जी को सम्मानित किया गया।

हिन्दीरत्न से सम्मानित होने के उपरांत प्रो. अरविन्दाक्षन ने हिन्दी भवन का आभार प्रगट करते हुए कहा कि यह सम्मान मेरे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सम्मान देश में हिन्दी की अलख जगाने वाले राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन जैसी महान विभूति के जन्म दिवस एवं पं. भीमसेन विद्यालंकार जैसे लेखक-पत्रकार की स्मृति में दिया जाता है। जिस तरह मैं मलयालम भाषी हूं उसी तरह से अपने को हिन्दीभाषी समझ रहा हूं । हिन्दी को महत्वपूर्ण भाषा बताते हुए उन्होंने उसके आंगन में प्रवेश कर पाने में खुशी जताई । उन्होंने हिन्दी के समावेशी स्वभाव की प्रशंसा की और कहा कि कुछ जगहों पर विवाद के बावजूद हिन्दी की स्वीकृति सब जगह है।

समारोह के मुख्य अतिथि एवं साहित्य अकादमी के अध्यक्ष श्री विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि हिन्दी के विद्वान एवं मलयालम भाषी अरविन्दाक्षनजी को हिन्दीरत्न सम्मान से सम्मानित करके हिन्दी भवन ने बहुत ही उपयुक्त कार्य किया है। हर व्यक्ति की अपनी मातृभाषा होती है और वह इतनी प्रिय होती है कि उसके सामने कोई दूसरी चीज नहीं होती। इसलिए जो व्यक्ति दूसरी भाषा में अपनी भावनाओं को व्यक्त करता है उसका सम्मान किया जाना चाहिए। किसी लेखक के सम्मान के पीछे एक धारणा यह भी होती है कि लेखक अपना बहुत सारा समय समाज को देता है। उसे ठोस वस्तु की तरह कुछ बनाते हुए आप भले नहीं देख सकते, पर वह शब्द के जरिए सृजन करता है। हम लोग आज जो कुछ भी हैं, वह अपने पूर्वजों की कृतियों के कारण है, जिनका हमारे ऊपर प्रभाव पड़ा और जो भाषा हमें सोचने को मिली है, उसे हमारे लेखकों ने ही परिष्कृत किया है।

समारोह के मुख्य अतिथि एवं साहित्य अकादमी के अध्यक्ष श्री विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि हिन्दी के विद्वान एवं मलयालम भाषी अरविन्दाक्षनजी को हिन्दीरत्न सम्मान से सम्मानित करके हिन्दी भवन ने बहुत ही उपयुक्त कार्य किया है। हर व्यक्ति की अपनी मातृभाषा होती है और वह इतनी प्रिय होती है कि उसके सामने कोई दूसरी चीज नहीं होती। इसलिए जो व्यक्ति दूसरी भाषा में अपनी भावनाओं को व्यक्त करता है उसका सम्मान किया जाना चाहिए। किसी लेखक के सम्मान के पीछे एक धारणा यह भी होती है कि लेखक अपना बहुत सारा समय समाज को देता है। उसे ठोस वस्तु की तरह कुछ बनाते हुए आप भले नहीं देख सकते, पर वह शब्द के जरिए सृजन करता है। हम लोग आज जो कुछ भी हैं, वह अपने पूर्वजों की कृतियों के कारण है, जिनका हमारे ऊपर प्रभाव पड़ा और जो भाषा हमें सोचने को मिली है, उसे हमारे लेखकों ने ही परिष्कृत किया है।

हिन्दी भवन के अध्यक्ष श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी ने अपने आशीर्वचन में राजर्षि टंडन एवं पं. भीमसेन विद्यालंकार को याद करने के साथ-साथ द्विवेदी युग के प्रतिनिधि कवि, लेखक एवं समाज सुधारक नाथूराम शर्मा ‘शंकर’ को याद किया, जिनके चित्र का अनावरण भी आज हिन्दी भवन सभागार में किया गया।

समारोह का कुशल संचालन सुश्री प्रभा जाजू ने किया। हिन्दी भवन के मंत्री डॉ. गोविन्द व्यास ने सभी उपस्थित हिन्दीप्रेमियों का धन्यवाद किया। समारोह में राजधानी के साहित्यकार, पत्रकार, बुद्धिजीवी, राज-समाज सेवी और हिन्दी-प्रेमी काफी संख्या में मौजूद थे। जिनमें प्रमुख हैं सर्वश्री रामनिवास जाजू, महेशचन्द्र शर्मा, रामनिवास लखोटिया, इन्दिरा मोहन, संतोष माटा, रामपाल विद्यालंकार, सुशीलकुमार गोयल, चमनलाल सप्रू, वीरेन्द्र प्रभाकर, निशा भार्गव, रघुनंदन शर्मा ‘तुषार’, नूतन कपूर, अनिल वर्मा ‘मीत’, किशोर कुमार कौशल, स्नेह सुमन, अरूण भल्ला आदि ।