पं. गोपालप्रसाद व्यास

हिन्दी भवन एवं दिल्ली हिन्दी साहित्य सम्मेलन के संयुक्त तत्वावधान में 2 जून, 2005 को पं. गोपालप्रसाद व्यास की स्मृति में एक स्मृति सभा का आयोजन किया गया। स्मृति सभा में दिल्ली के उपराज्यपाल श्री बनवारीलाल जोशी, सांसद विजयकुमार मल्होत्रा, सरोदवादिका शरनरानी, विधिवेत्ता लक्ष्मीमल्ल सिंघवी, डॉ. नामवर सिंह, प्रभाष जोशी, राजेन्द्र यादव, वेदप्रताप वैदिक, डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी, कवि-सांसद उदयप्रताप सिंह, कमलेश्वर, निर्मला जैन, सुधीश पचौरी, पत्रकार राहुल देव, शेरजंग गर्ग, बालस्वरूप राही, हिमांशु जोशी, माजदा असद, कुंवर बेचैन, कृष्ण मित्र, अरुण जैमिनी, महेन्द्र अजनबी, प्रवीण शुक्ल, विनय विश्वास, बलदेव वंशी, जयनारायण कौशिक, ओमप्रकाश आदित्य, लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, मुकुंद द्विवेदी, प्रेम जनमेजय, महेश दर्पण, हरिसिंह पाल, रामशरण गौड़, गंगाशरण तृषित, पुरुषोत्तम वज्र, हरीश नवल, दीक्षित दनकौरी, इन्दिरा मोहन, संतोष माटा, महेशचंद्र शर्मा आदि अनेक कवि, साहित्यकार, पत्रकार एवं राज-समाजसेवियों ने व्यासजी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। व्यासजी को याद करते हुए दिल्ली के उपराज्यपाल श्री बनवारीलाल जोशी ने कहा- “हिन्दी में हास्य के द्वारा साधारण से साधारण विषय के माध्यम से आत्मा को छू जाने वाली कविता रचने की अदभुत क्षमता व्यासजी में थी। जो उन्हें एक बार सुन लेता था, भुला नहीं पाता था। वह गए नहीं, आज भी हमारे बीच में हैं। बस जरूरत महसूस करने की है। व्यासजी के बारे में जितना कुछ कहा जाए कम है।हिन्दी के लिए उन्होंने जो कुछ किया वह कभी भुलाया नहीं जा सकता। हिन्दी भारत की आत्मा बनकर रहे, संस्कृति बनकर रहे, इसकी जिम्मेदारी व्यासजी ने बखूबी निभाई।”

प्रसिद्ध समालोचक डॉ. नामवर सिंह ने व्यासजी का स्मरण करते हुए कहा – “व्यासजी इस समय हिन्दी के भीष्म पितामह थे और हमारे बुजुर्गों में अंतिम स्तंभ थे जो ढह गए। उन्होंने हिन्दी पत्रकारिता में बहुत लंबे समय तक अपनी पारी खेली और ‘यत्र-तत्र-सर्वत्र’ से लेकर ‘नारदजी खबर लाए हैं’ जैसे कॉलम दीर्घकाल तक लिखते रहे। दिल्ली में हिन्दी को व्यासजी हिन्दी भवन के रूप में अपना घर दे गए। उन्होंने स्वयं को साहित्यकार कहने का दावा कभी नहीं किया, लेकिन उनकी ‘हिन्दी की आस्थावान पीढ़ी’ नामक अंतिम पुस्तक में अदभुत और अविस्मरणीय संस्मरण हैं। एक समर्थ लेखक और साहित्यकार के रूप में उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।”

प्रसिद्ध कथाकार व ‘हंस’ के संपादक राजेन्द्र यादव ने कहा- “किस तरह एक व्यक्ति धरती से उठकर ऊंचाइयां छू सकता है, इसके वे अदभुत उदाहरण थे। किस तरह एक आदमी अपने को संशोधित, प्रशिक्षित करते हुए बढ़ाता है, यह श्री व्यास के जीवन से समझा जा सकता है। उन्होंने बहुत हल्की-फुल्की कविता से लेखन प्रारंभ किया और ‘कहो व्यास, कैसी कटी ?’ जैसी उत्कृष्ट रचना दे गए। जिंदगी में उन्होंने जो देखा-सुना, उसी के माध्यम से वे चलते रहे।”

वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी ने कहा- “व्यासजी ने जितने साल एक दैनिक अखबार में बिना किसी व्यवधान के ‘यत्र-तत्र-सर्वत्र’ और ‘नारदजी खबर लाए हैं’ जैसे कॉलम लिखे, वह अपने आपमें एक मील का पत्थर हैं। उनके निधन के साथ हिन्दी में पूजा की तरह काम करने वाली एक पीढ़ी का समापन हुआ है।” डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी ने व्यासजी को निष्ठा और समर्पण का पर्याय तथा हिन्दी के प्रति आस्थावान पीढ़ी का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा “व्यासजी की दृष्टि हिन्दी साहित्य की दृष्टि बनी। उनके प्रयासों ने हिन्दी-अभियान को बल दिया।” वरिष्ठ पत्रकार वेदप्रताप वैदिक ने व्यासजी की स्मृति सभा को उत्सव सभा बताते हुए कहा- “सारे पक्के काम करने के बाद देहमुक्ति उत्सव की बात नहीं तो और क्या है ? व्यासजी का पूरा जीवन ही उत्सव था। अगर वे किसी और भाषा के होते तो उन्हें महाकवि का दर्जा मिलता।” साहित्यमना सांसद विजयकुमार मल्होत्रा ने व्यासजी को हास्यरसावतार का मूर्त्तरूप बताते हुए कहा कि वह एक राष्ट्रवादी कवि थे। उनका स्मारक हिन्दी भवन के रूप में विद्यमान है। हास्यकवि ओमप्रकाश आदित्य ने कहा- “व्यासजी वेदव्यास के समकक्ष थे। उन जैसा जीवंत, कर्मठ और निष्ठावान व्यक्ति हिन्दी साहित्य में देखने को नहीं मिलेगा। वह मस्ती के ठसकदार कवि थे।” आलोचक सुधीश पचौरी ने कहा -“व्यासजी हिन्दी की लोकप्रिय कविता के शीर्ष कवि थे। उनका गद्य-साहित्य, ललित लेखन की प्रामाणिक टकसाल है।” अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त सरोदवादिका शरनरानी ने कहा- “व्यासजी कवि होने के साथ-साथ संगीतज्ञ भी थे।” वरिष्ठ आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी ने व्यासजी को हिन्दी का भीष्म पितामह बताया।

सभा का प्रारंभ दिल्ली हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष महेशचंद्र शर्मा ने किया। संचालन करते हुए हास्यकवि सुरेन्द्र शर्मा ने हिन्दुस्तान में प्रकाशित उस पत्र का पाठ किया जिसमें व्यासजी ने ‘नारदजी खबर लाए हैं’ स्तंभ के पाठकों से विदा ली थी। ‘नारदजी को व्यासजी का नमस्कार !’ शीर्षक से शनिवार, 28 मई, 2005 को ‘हिन्दुस्तान’ में छपे पत्र का अविकल आलेख इस प्रकार है- “वंदनीय, भक्तप्रवर, देवर्षि एवं आदि पत्रकार नारदजी महाराज, मेरे हार्दिक प्रणाम स्वीकार करें। लगभग 45 वर्षों से आप नियमित रूप से ‘हिन्दुस्तान’ के सुधी पाठकों के लिए नई, ताजा और मनभावन खबरें ढूंढ-ढूंढकर लाते रहे और हमारे पाठकों को हर्षाते और सरसाते रहे। मेरे लिए यह सौभाग्य की बात है कि इस दीर्घकालीन अवधि में आपकी विश्वसनीयता और मेरी निष्ठा अक्षुण्ण बनी रही, लेकिन जैसे-जैसे आपके द्वारा पोषित और मेरे द्वारा लिखित ‘नारदजी खबर लाए हैं’ स्तंभ लंबी आयु का कीर्तिमान स्थापित करता गया, वैसे-वैसे मेरा भौतिक शरीर जवाब देता गया। अब स्थिति यह है कि ‘मेरे मन कछु और है, विधना के कछु और।’ आप तो देवलोक से पैयां-पैयां आते-जाते कहां थकने वाले थे, लेकिन मेरे ही हाथ-पैर थक गए। आपके निरंतर और नियमित आगमन के लिए मैं नतमस्तक हूं एवं विनम्र अनुरोध करता हूं कि खबरें देने के लिए आप पधारने का कष्ट न उठाएं, क्योंकि आपके आशीर्वाद से मैं स्वयं देवलोक आने की तैयारी कर रहा हूं। अब वहीं आपसे मिलना होगा। देवलोक में जैसे आप सबकी खबर लेते रहें हैं, मेरी भी लेंगे- सादर सविनय, गोपालप्रसाद व्यास।”

जिस दिन उक्त पत्र ‘हिन्दुस्तान’ में प्रकाशित हुआ, उसी दिन प्रातः 6 बजे व्यासजी देवलोक को प्रस्थान कर गए।

व्यासजी की स्मृति सभा में राजधानी के पत्रकार, कवि, लेखक, कलाकार, बुद्धिजीवी एवं राज-समाजसेवी बड़ी संख्या में उपस्थित हुए और उन्हें अपनी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित की।