डॉ. एन. चन्द्रशेखरन नायर

राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन की 133 वीं जयंती के अवसर पर प्रख्यात पत्रकार पंडित भीमसेन विद्यालंकार की स्मृति में प्रतिवर्ष हिन्दी भवन द्वारा दिया जाने वाला ‘हिन्दीरत्न सम्मान’ राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रबल पक्षधर, अनेक भाषाओं के विद्वान, वरिष्ठ लेखक डॉ. एन. चन्द्रशेखरन नायर को हिन्दी भवन सभागार में आयोजित एक भव्य समारोह में प्रदान किया गया।

यह सम्मान उन्हें पूर्व उप प्रधानमंत्री एवं वरिष्ठ राजनेता सर्वश्री लालकृष्ण आडवाणी, प्रदीप कुमार, विरेन्द्र शर्मा एवं त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी एवं निधि गुप्ता ने क्रमश भेंट किया। सम्मान स्वरूप उन्हें रजत श्रीफल, शॉल, सरस्वती प्रतिमा, प्रशस्ति पत्र एवं एक लाख रुपये की राशि प्रदान की गई। हिन्दीरत्न सम्मान पाने वाले श्री नायर 17 वें अहिन्दीभाषी रचनाकार हैं।

वरिष्ठ राजनेता श्री लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि विद्वता के हिसाब से इस समय देश में डॉ. एन. चन्द्रशेखरन नायर जैसे लोग बहुत कम होंगे। नायरजी हिन्दी के भक्त हैं। हिन्दी का प्रचार जितना सिनेमा से हुआ है उतना किसी ओर प्रकार से नहीं। मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है पुस्तकें पढ़ना। सिंधी भाषी होने के बावजूद मैं हिन्दी से बहुत प्रेम करता हूं और अब तो हिन्दी का भक्त ही हूं। भारत में सबसे ज्यादा लोग हिन्दी समझते हैं। हिन्दी के कारण भारत पुष्ट हो रहा है।

समारोह के अतिविशिष्ट अतिथि केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त श्री प्रदीप कुमार ने टंडनजी एवं पं. भीमसेन विद्यालंकार के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा हिन्दी भवन सभी भाषाओं को सम्मान देता है, यह बहुत अच्छी बात है। गांधीजी का यह विश्वास था कि कोई भी देश अपनी भाषा के बिना महान नहीं बन सकता।

समारोह के विशिष्ट अतिथि डॉ. विरेन्द्र शर्मा ने कहा कि मैं हिन्दी भवन को साधुवाद देता हूं कि उन्होंने हिन्दीरत्न सम्मान के लिए डॉ. एन. चन्द्रशेखरन नायर को चुना। डॉ. नायर ने हिन्दी के लिए जो काम किया है वह अतुलनीय है। डॉ. नायर हिन्दी के सच्चे सपूत हैं।

हिन्दी भवन के अध्यक्ष श्री त्रिलोकीनाथ चतुर्वेदी ने राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन एवं पं. भीमसेन विद्यालंकार को याद किया और डॉ. नायर को हिन्दीरत्न बनने पर बधाई दी।

समारोह का कुशल संचालन श्रीमती प्रभा जाजू ने किया। हिन्दी भवन के मंत्री डॉ. गोविन्द व्यास ने सभी उपस्थित हिन्दीप्रेमियों का धन्यवाद किया। समारोह में राजधानी के साहित्यकार, पत्रकार, बुद्धिजीवी एवं राज-समाज सेवी काफी संख्या में मौजूद थे।